लेखनी कहानी -07-Mar-2023
: श्लोक ६ ते
१०
हे मेघ ! तुम पुष्करावर्तक
नामके जगत्प्रसिद्ध मेघो
के वंशो मे
उत्पन्न हुए हो,
इच्छानुकूल रुप धारण
कर सकते हो
देवराज इन्द्रके प्रधान सेवक
हो, यह सब
मै जानता हूँ
। इसी कारण
भाग्यवशात अपनी प्रियासे
( या अपने बान्धवोसे
) दूर बिछुडा हुआ
मै, तुमसे याचना
कर रहा हूँ
। गुणवान व्यक्तिसे
की गयी याचना
निष्फ़ल होनेपर भी अच्छी
है और नीच
व्यक्तिसे सफ़ल हुई
भी याचना अच्छी
नही ॥६॥
हे जलद ! तुम संतप्त
( ग्रीष्म अथवा विरहसे
दु:खी ) प्राणीयोकी
रक्षा करनेवाले हो,
अत: धनेश्चर कुबेर
के क्रोधके कारण
अपनी प्रियासे वियुक्त
हुए मेरे, सन्देशको
मेरी प्रियाके पास
पहुँचा दो ।
तुम्हे अलका नामकी
उस संपन्न यक्षोकी
नगरमे जाना है
जहाँके महल, समीपमे
रहनेवाले शिवजीके मस्तकपर स्थित
चन्द्रमाकी किरणोसे सदा उज्ज्वल
( प्रकाशमान ) रहते है
॥७॥
हे मेघ ! जब तुम
आकाशमे चढ जाओगे
तो प्रवासियोकी पत्नीयोको
अपने अपने पतीयोके
घर लौट आनेका
विश्वास हो जायेगा
और वे आश्वस्त
होकर अपने खुले
हुए केशोको ऊपर
उठा-उठाकर तुम्हे
देखेगी । क्योकि
तुम्हारे उमड आनेपर
अपनी विरहिणी पत्नीकी
उपेक्षा कौन करेगा
? जब कि मेरी
तरह किसी की
आजीविका दूसरोके अधीन न
हो ॥८॥
वायु तुम्हारे अनुकूल होकर
जिस प्रकार तुम्हे
आगे बढा रहा
है, और ( जल
से भरा हुआ
देखकर ) प्रसन्न हुआ चातक
तुम्हारे बायी ओर
मधुर-मधुर बोली
बोल रहा है
( यह तुम्हारी यात्राकी
सफ़लता का द्योतक
है ) । गर्भाधानका
समय जानकर आकाशमे
पंक्ति बनाकर उडती हुई
बलाकाएँ भी निश्चय
ही तुम्हारे पास
आयेगी ॥९॥
हे मेघ ! यदि तुम
बिना कही रुके
अलकामे पहुँचोगे तो शापकी
अवधिके दिन गिनती
हुई और ( पुनर्मिलन
की आशासे ) जो
मरी नही, ऐसी
पतिपरायण अपनी भाभीको
( अर्थात मेरी पत्नीको
) अवश्य देखोगे । क्योकी
स्त्रियो का ह्रदय
फ़ुलो के समान
कोमल, प्राय: शीघ्र
गिरनेवाला और प्रेमसे
भरा होता है
। वियोगके समय
आशारुपी बन्ध ( वृत्त ) ही
उसे रोके रहता
है ॥१०॥